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देवप्रयाग ,उत्तराखंड |
27 मई 2017
ललित का कई बार फोन आया की हरिद्वार चलो पर हर बार मैने उसको मना कर दिया। लेकिन एक दिन ( 27 मई 2017)फिर से ललित का फोन आया की उसे मुजफ्फरनगर कुछ काम है, आप भी चलो मेरे साथ और साथ में हरिद्वार भी नहा आएंगे। उस दिन मैं उसको मना नही कर पाया। उसे बोल दिया की अभी सुबह के दस बज रहे है एक घंटे बाद 11 बजे मोहननगर स्थित हिंडन एयर बेस के बाहर गोल चक्कर पर मिलूंगा। मैं लगभग 11 बजे मोहननगर पहुंच गया। थोडी देर बाद ललित भी आ गया। पहले हम सर्विस सैंटर गए जहां से ललित की कार ऊठाई और चल पडे अपने सफर पर। मेरठ पार करने के बाद नावले के पास मैकडोनाल्ड पर बर्गर व कोल्ड ड्रिंक ले ली गई। गाडी मे चलते चलते ही बर्गर का मजा ले रहे थे। रास्ते में ही हरिद्वार की एक धर्मशाला वैदिक योग आश्रम(आन्नद धाम) में एक AC रूम बुक करा दिया। तकरीबन शाम के पांच बजे हम दोनों हरिद्वार पहुंच गए।
सबसे पहले हम धर्मशाला पहुँचे। वहां पर हमें पांडेय जी मिले बडे ही सज्जन किस्म के व्यक्ति है। कुछ देर बाते होती रही फिर उन्होने रूम दिखा दिया हम सामान रख कर व उनसे यह बोलकर की हम खाना बाहर ही खाकर आएगे, हरिद्वार के एक घाट पर पहुंच गए। कुछ देर बाद गंगा आरती में भी शामिल होंगे। गंगा जी की आरती देखना व उसमे शामिल होना अपने आप में एक बेहद सुंदर पल होते है। गंगा जी की आरती में शामिल होकर व स्नान करने के बाद हम एक रेस्टोरेंट में खाना खाकर लगभग 8:30 पर वापिस धर्मशाला आ गए। कल हमे वापिस दिल्ली भी लौटना है लेकिन ललित ने कहा की मसूरी चलते है और दो दिन बाद घर लौट चलेंगे। मैने उससे कहा की तू कभी देवप्रयाग गया है उसने कहा की मात्र एक बार ही वह वहा से गुजरा है पर मन्दिर व प्रयाग पर नही गया। मैने कहां भाई मैं भी नही गया हूं इसलिए कल देव प्रयाग निकलते हैं। और हम यह कार्यक्रम बना कर सो गए।
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हरिद्वार स्तिथ आनंद धाम धर्मशाला |
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धर्मशाला संचालक – पांडेय जी व उनकी धर्म पत्नी |
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गंगा आरती |
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खाना खाने के बाद इसका स्वाद लिया गया |
28 मई 2017
सुबह लगभग 5:50 बजे नींद खुल गई। जल्दी से फ्रेश होकर व धर्मशाला के लिए कुछ अनुदान देकर हम सीधा गंगा घाट पर पहुंचे। गंगा स्नान कर हम निकल पडे देवप्रयाग की तरफ। लगभग 7:30 पर हम ऋषिकेश पहुंच गए। रास्ते में ही नाश्ता कर लिया गया। अभी ऋषिकेश में जाम नही था नही तो ऋषिकेश में राफ्टिंग वालो की वजह से बहुत जाम लगा रहता है। गर्मियो की छुट्टियों में। चलो हमे जाम नही मिला और हम ऋषिकेश से आगे बढ़ गए। आगे चलकर हमे शिवपुरी पर काफी गाडि़यां खडी मिली। यह सब लोग राफ्टिंग करने व कैम्पिंग करने आए है। लगभग 1200 रूपयो में यह एक व्यक्ति को कैम्पिंग व राफ्टिंग करा देते है। ऋषिकेश से देवप्रयाग तक की दूरी लगभग 75 किलोमीटर है। हम ब्यासी, कौडियाला होते हुए तीन धारा पहुंचे। पिछले साल बद्रीनाथ जाते वक्त हमारी बस यही रूकी थी नाश्ता करने के लिए। यहां पर बहुत से ढ़ाबे है। लेकिन आज हम यहां नही रुकेंगे बल्की सीधा देवप्रयाग जायँगे। देवप्रयाग एक पौराणिक नगर है। यह एक तीर्थ स्थल है। बड़े बड़े ऋषि मुनियों व श्री राम यहाँ पर आए और समय बिताया। देवप्रयाग समुन्द्र की सतह से लगभग 800 मीटर ऊंचाइ पर स्तिथ है। यह उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में आता है। इस नगर का नाम पंडित देव शर्मा के नाम पर पड़ा जो यहाँ पर सतयुग में आए और भगवान महादेव को अपनी भक्ति से से प्रसन्न किये।
हम लगभग सुबह के 10 बजे यहाँ पहुँचे। हमे यहाँ पर लगभग पंद्रह मिनट का जाम मिला। जाम से निकल कर हमने सड़क के किनारे जगह देखकर गाडी लगा दी और नीचे मन्दिर व संगम की तरफ चल पडे़। कुछ सीढियों से नीचे उतर कर हम सीधा प्रयाग पर पहुँचे। यह प्रयाग दोनो नदियों के संगम पर बना है एक तरफ हल्के हरे रंग की भागरीथी जो गंगोत्री से आती है तो दूसरी ओर अलकनंदा हल्का श्याम रूप लिये होती है जो बद्रीनाथ से आती है। भगवान बद्रीनाथ का रंग भी श्याम और नदी का भी। दोनो नदियां देवप्रयाग पर मिल जाती है और आगे चलकर गंगा नदी कहलाती है। संगम पर दोनो नदियों का रंग देखा जा सकता है। और इन्हें सास बहू भी कहते है। यहाँ नहाने के लिए एक छोटा सा घाट बना है। जहां पर लोग नहा रहे थे हमने भी हाथ मुंह अच्छी तरह से धौ डाले। फिर वही जल भरने के लिए कैन ली और संगम का जल भर लिया। मैं एक पत्थर पर बैठ गया और संगम के इस मनोहर दृश्य को देख रहा था तभी एक महिला जोर जोर से चिल्लाने लगी। उसके साथ वाले उसे नहाने लगे वह और जोरो से चिल्लाने लगी। वहा मौजूद लोग भूत प्रेत, ऊपरी पता नही कैसी कैसी बात करने लगे। अब शांत माहौल एक दम बदल गया। हम वहां से चल पडे और थोडा ऊपर रघुनाथ मन्दिर पहुंचे। यह मन्दिर भगवान राम को समर्पित है। मन्दिर में भगवान राम के दर्शन किये। मन्दिर में केवल भगवान राम की ही मूर्ति थी। राम दरबार नही है। मन्दिर के मुख्य पूजारी जी ने हमे प्रसाद दिया और बताया की रावण का वध करने के पश्चात श्री राम को बाह्मण हत्या का दोष लग गया। तब ऋषि मुनियों के कहने पर भगवान राम अकेले संगम पर आए और शिव की अाराधना की और उस दोष से मुक्त हुए। चूंकि राम यहां पर अकेले आए थे इसलिए मन्दिर में केवल राम की ही मूर्ति है। हम मंदिर से बाहर आ गए। मंदिर के नज़दीक कई मंदिर और बने है। बारी बारी सब मंदिर देख लिए।मंदिर परिषर में ही एक पुजारी मिले जो बद्रीनाथ मंदिर के पुजारी थे। वह बीमार थे इसलिए देवप्रयाग रह रहे है कुछ समय से। उनको कुछ मदद राशि दे कर हम दोनों मंदिर से बाहर आ गए। और चल पड़े आगे के सफ़र पर ………….
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ऋषिकेश के आस पास की फोटो |
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देवप्रयाग |
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देवप्रयाग संगम स्थल जहां अलकनंदा और भागीरथी मिल जाती है और आगे गंगा कहलाती है |

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मैं सचिन त्यागी देवप्रयाग संगम स्थल पर |
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ललित और मैं |
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अलकनंदा और भागीरथी |
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रघुनाथ मंदिर तक जाती सीढ़िया |
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रघुनाथ मंदिर ,देवप्रयाग |

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एक अन्य मंदिर |
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सड़क से संगम दिखता हुआ |
अगला भाग ………
इस यात्रा की सभी पोस्ट
1- दिल्ली से देवप्रयाग
2 – देवप्रयाग से चोपता
3 – चोपता से तुंगनाथ
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It was interesting to read your travel experience to Devprayag, Chopata in the land of Uttrakhand (Devbhumi).
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Thanks dhruvi for like arctical
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