देवप्रयाग से चोपता(कोटेश्वर महादेव व धारीदेवी) 

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धारी देवी मंदिर 

28 मई 2017

देवप्रयाग घुमने के बाद हम वापिस कार पर पहुंचे । मेने सुझाव दिया की यहां से कुछ दूर रूद्रप्रयाग  (67 किलोमीटर) है। आज वही रूक जाएगे और रूद्रप्रयाग के पास ही कोटेश्वर महादेव मन्दिर भी है वह भी देख लेंगे और अगले दिन वापिस चल देंगे। ललित ने भी आगे चलने की स्वीकृति दे दी। हम देवप्रयाग से लगभग दोपहरी के 11:30 पर आगे रूद्रप्रयाग की तरफ चल पडे। पता नही सबको यह महसूस होता है या नही पर मुझे हरिद्वार से निकलते ही और पहाड पर चढते ही बडी अच्छी सी फीलिंग्स आने लगती है। रास्ते मे हमे सिख भाईयो की टोली मिलती रही जो पवित्र धाम हेमकुंड जा रहे थे। रास्ते में कई लोग चार धाम यात्रियों के लिए भण्डारा भी लगाए हुए थे। जल्द ही श्रीनगर पहुंच गए। श्रीनगर उत्तराखंड का एक बडा नगर है। श्रीनगर से लगभग 15 किलोमीटर चलने पर कलियासौड़ जगह आती है। यहां पर माँ धारी देवी का मन्दिर अलकनंदा नदी के किनारे बना है। इन देवी की यहां पर बहुत मान्यता है। ऐसी मान्यता है की यह देवी उत्तराखंड की रक्षा करती है। चार धाम तीर्थों की रक्षा करती है। कहते है की किसी स्थानीय निवासीयो ने नदी में औरत की चीख सुनी। वह नदी के समीप गए तो देखा एक मूर्ति बहती हुई आ रही है। मूर्ति को गांव वालो ने वही स्थापित कर दिया, और अपने गांव के नाम पर ही इन माता का नाम धारी देवी रख दिया।

अभी कुछ साल पहले से अलकनंदा नदी पर बाँध बनाने का कार्य चल रहा है। जिससे विधुत उत्पादन किया जाएगा।  बाँध की वजह से अलकनंदा नदी के जल स्तर में बढ़ोतरी हुई। जिससे यह प्राचीन मन्दिर डूब क्षेत्र में आ गया। इसलिए 16 जून 2013 को धारी देवी की मूर्ति को उसकी जगह से हटाना पडा। और संयोग से उसी दिन उत्तराखंड में जल प्रलय आ गई। हर जगह बारिश हो रही थी। बादल फट गए थे ग्लेशियर टूट गए थे। जिससे हजारो की संख्या में लोग मारे गए। लोगो को कहना था की धारी देवी नाराज हो गई थी इसलिए यह प्रलय आई। बाकी आज मन्दिर को नया रूप दे दिया गया है। हमने धारी देवी को दूर से ही प्रणाम कर लिया। क्योकी अभी हमे 27 किलोमीटर और आगे रूद्रप्रयाग जाना था। अगली बार जब इधर आऊंगा तब धारी देवी के दर्शन अवश्य करूंगा। 

श्रीनगर 


श्रीनगर के पास 



मैं सचिन त्यागी और धारी देवी मंदिर नीचे दिखता हुआ। 


सड़क पर मंदिर का प्रवेश द्वार 


अब हम धारी देवी से तकरीबन 27 किलोमीटर दूर रूद्रप्रयाग की तरफ निकल पडे। लगभग दोपहर के 1:30 हो चुके थे, हम रूद्रप्रयाग पहुंचे। भूख भी जोरो से लग रही थी। ललित ने एक होटल की तरफ इशारा करते हुए बताया की जब वह जून 2013 में केदारनाथ आया था तब इसी होटल में रूके थे खाना खाने के लिए। मेने गाडी उसी होटल की पार्किग में लगा दी। खाने के लिए बोल दिया 60 रू थाली मिली। खाना स्वादिष्ट व सादा ही था। यह होटल अलकनंदा नदी के पास ही था। खाना खाने के बाद होटल के मालिक से रूकने के लिए रूम के लिए पूछा तो उसने 1000 रू बताया। हमने कहां की फिलहाल कोटेश्वर महादेव जा रहे है। वापसी में देखते है शायद आपके यही रूक जाए। अब हम प्रयाग के पास पहुचें । रूद्रप्रयाग मे बद्रीनाथ से आती अलकनंदा नदी व केदारनाथ से आती मन्दाकनी नदी का संगम है। हम नीचे प्रयाग नही गए। हम लोहे के पुल को पार करके बांये तरफ जाते रोड पर चल दिए। यह रोड केदारनाथ की तरफ जाता है। थोडा सा चलने पर ही कोटेश्वर मन्दिर के लिए एक रास्ता दांयी तरफ मन्दाकनी नदी के साथ अलग चला जाता है। हम भी उस तरफ चल पडे। लगभग तीन किलोमीटर चलने पर कोटेश्वर महादेव मन्दिर पहुँच गए। मन्दिर नीचे नदी के किनारे बना है। एक प्राचीन गुफा भी है जिसमे पानी रिसता रहता है और अजीब अजीब सी आकृतियाँ  रूप ले लेती है। जिनको लोग भगवान का नाम व अस्त्रशस्त्र का नाम दे देते है। बाकी यह प्राकृतिक गुफा देखने में बडी ही सुंदर लगती है क्योकी प्रकृति द्वारा बनाई गई हर चीज सुंदर ही होती है लेकिन मनुष्य उनका ज्यादा दोहन कर कर के उनको बर्बाद कर देता है। गुफा में दर्शन करने के पश्चात् हम नीचे मन्दाकनी नदी के समीप गए। कुछ फोटो सोटो लिए और हाथ मुंह धौकर ऊपर आ गए। ऊपर कुछ मन्दिर और भी बने है जिनसे शनीदेव,  हनुमान व शिव की मन्दिर भी है। एक मन्दिर में कुछ भक्त शिव का जल अभिषेक कर रहे थे। हमने भी माथा टेका और मन्दिर से बाहर आ गए। बाकी इस मन्दिर की पौराणिक महत्व पता नही चल पाया। लेकिन यह केदार खंड है मतलब शिव की भूमि तो कुछ ना कुछ इस मन्दिर का महत्व तो जरूर रहा होगा तभी तो लोग यहां पर दर्शन करने आते है। बाकी यह जगह काफी सुंदर है आप वैसे भी यहां आ सकते है  और इस जगह की सुंदरता को देख सकते है।

रुद्रप्रयाग 


रुद्रप्रयाग 
यहाँ से लेफ्ट होना है केदारनाथ वाले रस्ते पर फिर वहा से पोखरी वाले रोड पर मुड़ना है वही से कोटेशवर के लिए रास्ता अलग होता है 
कोटेश्वर महादेव मंदिर का बाहरी द्वार 


मंदिर तक जाता रास्ता 


मंदिर तक जाता रास्ता 


किसी ने मिट्टी का शिवलिंग बनाया हुआ है 


मंदिर परिषर 


मंदिरो के बीच से गुफा तक जाता रास्ता और नीचे मन्दाकनी नदी दिखती हुई 



गुफा में शिवलिंग 


रिसते हुए पानी से बनी आकृतियाँ 


शेषनाग 



नीचे मंदाकनी नदी ऊपर झूला पुल 


ललित 


हम ही है सचिन 


कुछ देर बाद हम वापिस गाडी पर पहुंच गए और समय देखा तो लगभग तीन बज रहे थे। मैने ललित से कहां की चल चोपता चलते है पास में ही है लगभग 6 बजे तक वहां पहुंच जाएगे। उसने कहां की चलो ठीक है। अब गाडी की कमान ललित ने पकड ली। और चल पडे चोपता की तरफ। हम दोनो तिलवाडा होते हुए अगस्तमुनी पहुंचे। यहां पर महर्षि अगस्त का मन्दिर भी है। लगभग उसी मन्दिर के पास ही बाजार से मेने एक दवाई घर से एक मूव खरीदी। फिर हम आगे चल पडे। भीरी पहुंचने पर हमे तेज बारिश मिली। ललित ने मुझे याद दिलाया की आज 28 मई है और मौसम विभाग ने 28 और 29 को एक चेतावनी जारी की है की उत्तराखंड में तेज बारिश होगी। हम बारिश में चलते रहे और बारिॆश और तेज होती गई। ललित ने मुझसे कहा की वापिस रूद्रप्रयाग चलते है उसने तो एक सिक्के से टॉस भी कर लिया था की आगे जाए या नही। मैने उसे समझाया की हर बार जल प्रलय नही आती। हम उखीमठ रूकेंगे आज। मुझे पता था की वह कुछ डरा हुआ है क्योकी वह 16जून 2013 को केदारनाथ में था जिस दिन केदारनाथ में जल प्रलय आई थी। तब से वह कुछ डरने लगा है पहाडो की बारिश को देखकर। हम दोनो कुंड नामक जगह पहुंचे। यहां पर मैने अपने एक दोस्त संजय कौशिक जी को फोन लगाया की आप ऊखीमठ में कहा रूके थे एक दिन पहले।  उन्होने बताया की वह होटल का नाम नही जानते पर वह पहले चौक के पास ही है। खैर हम आगे बढ गए अब मौसम साफ हो चुका था। दूर अखंड हिमालय की उच्च चोटियां साफ नजर आ रही थी। इतनी साफ की देखते रहने का मन करता है। अब ललित भी खुश था और रास्ते की सुंदरता के मजे ले रहा था। ललित को रास्तो का व जगहो का नाम इतना याद नही रहता। लेकिन चोपता के रास्ते उसको जाने पहचाने लग रहे थे। उसने बताया की वह 16 जून 2013 को इसी रास्ते से चमोली गया था। हम दोनो थोडी देर के लिए मक्कु बैंड पर रूके हमने एक दुकान पर चाय पी और बिस्किट खाए। आगे चलकर हम बनियाकुंड पर रूक गए । हनुमान मन्दिर के ठीक सामने। हमे 800 रू में कमरा मिल गया। यहां पर फोन काम नही कर रहा था इसलिए होटल से चोपता की तरफ चल पडे एक ऊंची जगह पर चढ गए आगे एक कैम्प भी लगा था। यहां पर वोडाफोन के सिग्नल आ रहे थे। घर फोन करके बता दिया की हम हरिद्वार से चोपता आ गए है। और दो दिन बाद घर आएगे। घर फोन करना इसलिए जरूरी था क्योकी हम घर से केवल हरिद्वार बता कर ही आए थे। यहां पर हमे एक परिवार मिला जो देहरादून से आया हुआ था। और कैम्पिंग का पूरा समान लिए हुए थे। लेकिन बारिश की वजह से उनको होटल लेना पडा। उन्होने हमें चाय अॉफर की फिर हम दोनो उनके साथ काफी देर तक बैंठे रहे। ललित भी अपनी केदारनाथ यात्रा के बारे में सुनाता रहा। फिर हम वहां से चल पडे। अब अंधेरा हो चुका था होटल पहुंचते ही हमे खाना मिल गया। अब मौसम में ठंड बढ़ने लगी थी। और हम गर्म कपडे लाए थे नही वो तो मेरे बैग में एक गर्म हाफ जैकेट पडी थी जो मेने पहन ली, ललित को मेने अपनी रेन कोट की जैकेट दे दी। अंदर दोनो ने दो दो टी-शर्ट पहन ली। अब सर्दी कम लग रही थी। खाना खाने के बाद देहरादून वाला परिवार सड़क पर मिला वह कुछ लोग खाना खाने आए थे। उन्होने एक बहुत लम्बी दूरी तक रोशनी फेंकने वाली टार्च ली हुई थी। कह रहे थे की आगे रोड पर जाएगे और जंगली जानवरों को इस टार्च की वजह से देखेंगे। आप को बता दूं  की चोपता व आसपास की जगह केदारनाथ वन अभयारण्य क्षेत्र में आता ।इसलिए भालू, काकड व अन्य जंगली जानवरों का यहां मिलना साामान्य है। लेकिन यह जानवर जहां इंसानी बस्ती व ज्यादा चहल पहल होती है, उधर नही आते है। कुछ स्थानीय लोग जो हमारे पास बैठे थे वह भी हमको भालू के किस्से सुनाने लगे। काफी देर बाद मुझे नींद आने लगी थी और ललित को भी, इसलिए हम सोने के लिए अपने रूम में चले गए……

चल पड़े मुसाफ़िर ,(रुद्रप्रयाग )


रुद्रप्रयाग से आगे 


अगस्तमुनि और मंदिर को जाता रास्ता 


कुंड से सीधे हाथ पर मुड़ने के बाद ऐसा नज़ारा दीखता रहता है। 



बनियाकुण्ड में जहाँ हम रुके थे वो होटल (होटल मोनल ) और ललित 


अखण्ड हिमालय 



हनुमान मंदिर बनियाकुण्ड ,चोपता 


चोपता को जाती सड़क 


देहरादून का परिवार जिन्होंने हमे चाय पिलवाई थी साथ में ललित 


आग से निकला धुंआ और ढलती सर्द शाम 


बोन फायर 


कैंप जहां खाने पिने और रहने का 3500 रुपए लगते है अकेले बन्दे के 


शिकार और शिकारी 


चोपता 


चोपता 


चोपता 



पिछला भाग…. 

आगे का भाग…. 

१. दिल्ली से देवप्रयाग

२. देवप्रयाग से चोपता

३। चोपता से तुंगनाथ 

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