24 jan 2016 ,sunday
सबसे पहले यह बताना जरूरी है की यह नाग टिब्बा क्या है। टिब्बा का मतलब होता है, ऊँची चोटी या जगह। यह एक छोटा ट्रैक है, जो देहरादून के बेहद नजदीक है, नागटिब्बा तक एक पैदल रास्ता देवलसारी से जाता है ओर एक रास्ता पंतवाडी से। हम लोग पंतवाडी से जाने वाले थे, ओर पंतवाडी से नाग टिब्बा तक 10km का पैदल ट्रैक है। नाग टिब्बा समुंद्र तल से लगभग 3022 मीटर ऊंचाई पर स्थित है, यह गढ़वाल क्षेत्र के निचली हिमालय पर्वतमाला की सबसे ऊंची चोटी है, नागटिब्बा को वहा के स्थानीय लोग झंडी कहते है। नाग टिब्बा से तकरीबन दो किलोमीटर पहले नाग देवता का एक मन्दिर भी है।
हम लोगो के वट्सऐप पर दो घुमक्कड ग्रुप बने है, एक पर नीरज जाट ने नाग टिब्बा पर जाने का कार्यक्रम बनाया तो दूसरे पर बीनू कुकरेती व मनु त्यागी जी ने हर की दून जाने। मेरा मन दोनो जगह जाने का था, पर समय की उपलब्धता को देखकर नाग टिब्बा जाना तय हुआ, क्योकी यह लगभग मेरी पहली ट्रैकिंग थी, इससे पहले मै केवल चकराता स्थित टाईगर फॉल तक ट्रैकिंग करते गया था वो भी लगभग आज से तकरीबन पंद्रह साल पहले, जब टाईगर फॉल तक रास्ता नही बना था, लेकिन वह बीती बात हो गई, इसलिए नाग टिब्बा को ही मै अपनी पहली ट्रैकिंग मानता हुं।
कार्यक्रम यह बना की हम 24 Jan को सुबह दिल्ली से चलेगे ओर पानीपत से सचिन जांगडा को लेते हुए, पौंटा साहिब होते हुए, पंतवाडी रूकेगे। जहां से अगले दिन नाग टिब्बा की ट्रैकिंग चालू करेगे। हम नाग टिब्बा जाने वाले तकरीबन 11 सदस्य हो गए थे, पांच हम दिल्ली से जाने वाले थे, जिसमे मै, नीरज व उनकी पत्नी व उनके दो जानने वाले थे, एक हमारे फेसबुक दोस्त सचिन कुमार जांगडा थे, जो हमे पानीपत से मिलने वाले थे, एक सदस्य लखनऊ से आ रहे थे इनका नाम है पंकज मिश्रा जी जो OBC बैंक मे चीफ मैनेजर के पद पर कार्यरत है, यह हमे हरबर्ट पूर से मिलने वाले थे, ओर चार सदस्य अम्बाला से अपनी गाडी से आ रहे थे, इनमे मेरे एक ब्लॉगर मित्र नरेश सहगल भी थे, यह हमे पौंटा साहिब गुरूद्वारा मिलने वाले थे।
मै 24 जनवरी की सुबह 6:15 पर कार सहित नीरज जाट के घर (शास्त्री पार्क) पहुचं गया, ओर जल्द ही हमने अपने बैग व ट्रैकिग का सारा समान गाडी की डिग्गी मे रख दिया, अभी भी हल्का हल्का अंधेरा था, लगभग सुबह के सात बजे हम दिल्ली से निकल पडे, रास्ते में घना कोहरा मिला पर आराम आराम से गाडी चलाते हुए दिल्ली सोनीपत बार्डर पर आ गए, यहां पर नीरज ने जांगडा को फोन मिलाया तो उसने बताया की वह पानीपत टोल टैक्स पर मिलेगा लेकिन साढे दस बजे के बाद मिलेगा। इतने में हमारे एक अन्य मित्र जो सोनीपत में रहते है, संजय कोशिक जी उनका फोन नीरज के फोन पर आ गया, बोले की रास्ते में घर होकर जाना, बस फिर क्या था चल पडे संजय कोशिक जी के घर चाय पीने के लिए। मैन रोड से थोडा चलने पर ही संजय जी व उनका बेटा हमारा इंतजार करते हुए मिल गए, संजय जी व परिवार के सदस्यो से मुलाकात हुई, यहां पर आकर बहुत अच्छा लगा, संजय जी ने चाय के बाद हमे आगे के सफर के लिए मुंगफली दी, जो आगे हमारे सफर पर बहुत काम आई।
संजय जी से मिलकर हम वापिस पानीपत की तरफ चल पडे। समय लगभग दस बज रहे थे, टोल टैक्स पार कर कार साईड में लगा दी, देखा तो सचिन जांगडा ठंड मे आग तापता मिला, हमने कहां की तुम तो लेट आने वाले थे, फिर जल्दी कैसे आ गए, अपने हंसी मजाक के अंदाज में जांगडा ने नीरज की तरफ इशारा करते हुए कहां की यह बुरा मान जाता इसलिए समय पर आ गया। यहां से सचिन जागंडा मेरे साथ कार मे हो लिया ओर नीरज को सचिन की बाईक चलानी पडी, एक दो जगह रूक रूक कर हम यमुनानगर पहुचें।
दोपहर के तकरीबन एक बज रहा था, नीरज ने हमे फव्वारा चौक पर रूकने के लिए बोला, जब हम वहां पहुचें तो नीरज के साथ दो ओर अन्य व्यक्ति थे। जिनमे से एक थे दर्शन लाल बवेजा जी जो एक साइंस टीचर है, बवेजा जी नीरज के फेसबुक दोस्त है, उन्होने पास ही रेस्ट्रोरेंट में दोपहर के खाने का इंतजार किया हुआ था, वैसे हम सबने आलू के पराठे ही खाए। खाने के दौरान दर्शन जी ने बताया की यमुनानगर से तकरीबन सत्रह किलोमीटर बाद कालासर जंगल आरंभ होता है, वही मैन रोड पर ही कालेश्वर धाम नाम से एक पुराना शिव मन्दिर पडता है, जहां पर रविवार के दिन हिमालय की जडू- बूटी से निर्मित एक शिव अमृत नामक दवा भी पिलाई जाती है, जिससे किसी भी प्रकार का कैंसर ठीक हो जाता है, उन्होने बताया की यहां पर स्वंयमभू शिवलिंग है, जब उन्होने हमे इस बारे मे बताया ओर वह स्थान रास्ते मे भी पड रहा है तो हमने वहां पर जाने का कार्यक्रम तय कर दिया।
दर्शन जी से मिलकर हम कालासर की तरफ या कहे की अपनी मंजिल की तरफ चल पडे, सचिन जांगडा ने नरेश सहगल जी को फोन मिलाया तो वह पौंटा साहिब थे, इसलिए हमने उन्हे बता दिया की हम पौंटा साहिब नही आ पाएगे आप सीधा पंतवाडी रूको, वही पर मिलते है आपको। यमुनानगर से कालासर महादेव तक सडक़ सिंगल लेन की है पर बनी सही है, इसलिए थोडी ही देर बाद हम लोग कालेश्वर महादेव मन्दिर पहुचं गए। यहां पर मन्दिर दर्शन किए, वह शिव अमृत बांट रहे एक सन्यासी किस्म के बाबा जी से भी मिले, उन्ही के पास एक डा० साहब भी बैठे थे, जो लोगो की नब्ज देखकर बीमारी बता रहे थे, फीस कुछ नही ले रहे थे, मन्दिर में भंडारा भी चलता रहता है। पता चला की शिव अमृत नामक दवा कोई भी पी सकता है, सबने थोडी थोडी पी, भंयकर कडवी दवा थी ये, एक शीशी मेने भी रू०160 प्रतिलीटर की दर से खरीद ली, क्योकी यह दवा अन्य आम बीमारीयो में भी लाभकारी है।
मन्दिर से चलकर हम कालेसर जंगल से निकले,यहां पर हमे बहुत बढिया सडक भी मिली गाडी की रफ्तार अपने आप बढ गई, जैसे गाडी खुद कह रही हो की मुझे उडने दो पर मैने गाडी को काबू किया। मै ज्यादातर तेज गाडी नही चलाता हुं। यहां पर रोड के दोनो तरफ बंदर बैठे थे। मैने देखा है की कुछ लोग बंदरो को खाने के लिए कुछ ना कुछ देते है, इस कारण यह बंदर जगंल से बाहर आकर सडक के पास ही रहना चालू कर देते है, कभी कभी रोड पर इनके कारण रोड पर दुर्घटना भी घट जाती है, आगे चलकर हमने सड़क पर कुछ बंदरो के शव भी देखे जो शायद किसी गाडी से टकराकर मारे गए होगें। इसलिए आपसे निवेदन है की आप भी सड़क छाप बंदरो को खाना ना फैके।
जांगडा ने मन्दिर से अपनी बाईक नीरज से ले ली ओर जगंल के इन खूबसूरत रास्तो पर बाईक चलाने का मजा लेने लगा, हम उसके पिछे पिछे ही चल रहे थे, हमने हरियाणा से हिमाचल मे प्रवेश किया,शायद यहां पर तीस रूपयो की पर्ची कटी। पौंटा साहेब गुरूद्वारा के सामने से निकल कर हम सीधा हर्बटपूर जाकर ही रूके, यहां पर एक चौक पर पंकज मिश्रा हमारा इंतजार करते हुए मिले, उन्होने मुझसे मिलते ही कहां की आप सचिन त्यागी है ना। शायद उन्होने मेरी एक दो पोस्ट पहले से ही पढी हुई थी, उनका समान कार मे रख दिया, यहां से जांगडा व नीरज के रिश्तेदार नरेंद्र जी बाईक पर बैठ गए ओर हम बाकी पांचो कार में, थोडा चलने पर ही पहाडी मार्ग् चालू हो जाता है, यह देहरादून यमुनोत्री मार्ग है, आगे चलकर इसी रोड पर यमुना ब्रिज पडता है, जहां से थोडा आगे एक रास्ता कैम्पटीफॉल मसूरी के लिए निकल जाता है। यही थोडी देर यमुना ब्रिज पर रूके, यमुना नदी के बेहद करीब जाने का मन था पर जा ना सके, यमुना नदी यहां पर छोटी सी व साफ लग रही थी नही तो दिल्ली मे तो यह काली दिखने लगती है। ब्रिज के पास ही एक चाय की दुकान थी जहां शाम की चाय पी गई, यहीं पर हमने नरेश जी को फोन किया तो पता चला की वह पंतवाडी पहुचं गए है, हमने भी रूकने के लिए तीन कमरे बुक करने के लिए उन्ही से कह दिया, क्योकी फिर हमे वहां जाकर रूम नही ढुंढने पडेगे। थोडी देर बाद यमुना के पुल से चल पडे, यह रास्ता ठीक बना है, कही कही सडक़ निर्माण कार्य भी चल रहा था, यह सडक़ सीधे यमुनोत्री चली जाती है, अब हल्का हल्का अंधेरा हो चुका था, मुख्य सडक पर एक जगह नैनबाग नामक एक छोटा सा बाजार आया, जहां से पंतवाडी के लिए दांहिने हाथ को रास्ता अलग हो जाता है, नैनबाग में भी रूकने को छोटे छोटे होटल बने थे, नैनबाग से पंतवाडी तकरीबन 15kmकी दूरी पर है, कुछ दूर तक सडक ठीक थी लेकिन फिर खराब ही मिली, ओर ट्रैफिक तो था ही नही दो तीन गांव भी पडे इस रास्ते पर, हम लोग पूरे अंधेरा में ही पंतवाडी पहुचें।
नरेश जी व उनके तीन मित्रो से मुलाकात हुई, उन्होने हमारे लिए एक होटल मे तीन कमरे पहले से ही बुक किये हुए थे, हमारा होटल व उनका होटल के बीच दूरी भी बहुत थी, क्योकी पंतवाडी में ज्यादातर लोगो ने छोटे ही होटल बनाए हुए है, क्योकी यहां पर केवल ट्रैकर ही आते है वो भी हर मौसम में नही, वैसै यहां पर एक गोट विलेज नामक बडा रिजोर्ट बन रहा है।
हम लोग अपना अपना समान अपने रूम पर रख आए, मैने गाडी भी होटल के पास एक बनी गांव की पार्किग में लगा दी, जहां पर गांव वालो ने जमीन पर पत्थर की औखली बना रखी थी जिसका वह दाल दलने व ओर बहुत सी वस्तुओ को पीसने में प्रयोग पर लाते होंगे। अगले दिन गाडी को देखकर कुछ गांव लोगो ने मुझ से कहा की आप यहां तक कार कैसे चढा लाए। क्योकी यह रास्ता एकदम ऊंचाई पर व बेहद पतला ओर ऊपर से कुछ मोड वाला था।
खैर छोडो ये बाते! हम सब अपना अपना समान रख कर एक होटल( होटल परमार) मे बैठ गए, जहां पर नरेश जी ने बताया की वह कल सुबह ही ट्रैक पर निकल पडेगे ओर रात होने से पहले वापिस आ जाएगे, हमने भी अपना कार्यक्रम बता दिया की दोपहर को चलेगे, शाम को नाग देवता मन्दिर के पास अपने टेंट लगा देगे ओर रात वही रूककर सुबह नागटिब्बा जाएगे, ओर फिर घर वापिसी की राह पकडेगे। सबने एक साथ खाना खाया ओर सुबह के लिए क्या क्या पैक करना है यह सब बता कर सोने के लिए अपने अपने कमरो में आ गए।
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अब इस यात्रा के कुछ फोटो देखे जाए …
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युमनानगर से कालासर तक ऐसा रोड था। |
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कालेश्वर महादेव मंदिर। |
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मंदिर के अंदर का दर्शय |
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यही मिलता है शिव अमृत। |
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कालेश्वर महादेव शिवलिंग। |
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माँ पार्वती |
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हिमाचल में प्रवेश |
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लो जी उत्तराखंड भी आ लिए हम। |
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युमना ब्रिज |
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सचिन त्यागी |
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शाम की चाय (पंकज मिश्रा, नीरज जाट, सचिन त्यागी) |
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युमना नदी |