21 जनवरी 2018
यात्रा वृतांत
सुबहे होटल में ही नाश्ता किया था अब भूख जोरो से लग रही थी। इसलिए सड़क के किनारे पर बने एक ढ़ाबे पर पेट पूजा की गयी। खाना खाने के बाद हम आगे की और चल पड़े। जल्द ही दौसा पहुंच गए, दौसा में काफी होटल है जहा रुका जा सकता है और आसपास के दर्शनीय स्थलों को देखा जा सकता है। हम बांये रास्ते को मुड़ गए यहाँ से भानगढ़ तक़रीबन 32 km है। मतलब 40 मिनटों में हम वहां पहुंच ही जायँगे। अब रोड छोटा हो चला था कही कही सड़क निर्माण कार्य चल भी रहा था। कुल मिला कर रोड ठीक ठाक था। अब हमे ग्रामीण परिवेश में होने का अहसास हो रहा था। सड़क के दोनों तरफ गाँव दिख रहे थे। कही कही कुछ लोग राजस्थानी पहनावा पहने भी दिख रहे थे। हम शाम के लगभग चार बजे भानगढ़ पहुंचे। क़िले से कुछ दूरी पर 50 रुपयों की एक पर्ची काटी गयी। बाकि क़िले देखने का कोई टिकट नहीं था।
गाड़ी एक तरफ खड़ी कर हम क़िले में प्रवेश कर गए। प्रवेश द्वार के ही समीप हनुमान मंदिर बना है। यहाँ से आगे चलते ही पुराना बाजार आ जाता है रास्ते के दोनों तरफ दुकाने बनी है, जो कभी दो मंज़िला रही होगी। जिनको देखकर लगता है की कभी यहाँ पर बहुत बड़ा बाजार रहा होगा। आज मात्र उनके खंडर अवशेष ही बचे है। इस बड़े बाजार से होते हुए हम एक और दरवाजे पर पहुंचे। यह महल का दरवाजा है। दरवाजे के बायें तरफ एक खंडरनुमा इमारत है, और दाहिनी तरफ गोपीनाथ मंदिर है। गोपीनाथ मंदिर कभी विष्णु भगवान को समर्पित होगा लकिन फ़िलहाल यह मंदिर मूर्ति रहित है। मंदिर की बुर्ज भी नहीं है। लकिन यह मंदिर बाहर से उत्तम वास्तुकला का एक सुन्दर उदाहरण है। जब कभी यह महल आबाद रहा होगा तब यह कितना सुन्दर रहा होगा। केवल आज हम सोच ही सकते है। यह क़िला तीन तरफ से अरावली की पहाड़ियों से घिरा है। जो इसे और भी खूबसूरत बनाता होगा, लकिन आज यह एक भूतिया क़िला मात्र बन कर रह गया है। थोड़ा आगे चलने पर एक पानी की बाबड़ी है, जिसमे आज भी भरपूर पानी था। बाबड़ी के नजदीक ही सोमेश्वर महादेव मंदिर है। जो शिव को समर्पित है, यही पर हमे एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया की अब पर्यटक इधर आने लगे है पहले केवल आसपास के लोग ही आते थे। उसने हमे यह भी बताया की यहाँ कोई भूत -प्रेत नहीं है। यहाँ केवल जंगली जानवर है जिसमे जंगली सूूअर व तेंदुआ है जो गर्मीयो में यहाँ बाबडी पानी पीने भी आते है। उसने बताया की वह यहाँ कई साल से आता है लकिन उसे आज तक यहां कोई भी ऐसी अजीब बात महसूस नहीं की जिससेे यह साबित हो की यहां पर भूत प्रेत रहते है। उसने तांत्रिक सिंघिया की कहानी को भी नकली बताया। उसने एक पहाड़ी की तरफ इशारा करतेे हुुुए, एक छतरी दिखाई उस ने बताया की लोग उसे तांत्रिक की छतरी कहते है , और तरह तरह की कहानियों से जोड़ते है। जबकी वह पहले सैनिको के लिए रही होगी जहां सेे वह दूूूर तक नजर रख सके। उसको धन्यवाद करने के बाद हम मंदिर से बाहर आ गए
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श्रीमती जी |
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मैं ही हूँ सचिन त्यागी |
मंदिर से थोड़ा आगे चलकर एक और दरवाजा आया जो मुख्य महल या कहें की शाही राजमहल का था। कहते है की कभी यह कई मंजिला था लकिन आज दो या तीन मंजिल का ही रह गया है वो भी जर्जर हालत में। वैसे इस क़िले को भारतीय पुरातत्व विभाग ने अपने अधिग्रहण कर लिया है। हम किले की पहली मंजिल पर पहुुुुँचे, यहां पर आकर मेेेेरी श्रीमती और बेटा ऊपर नहीं गये क्योकि वो चलते चलते बहुत थक चुके थे। मैं ही ऊपर किले की तरफ चला गया। पहली मंजिल पर एक गलियारा बना था जिस के अंदर कमरे बने थे। जो अंधेरा समेटे हुए थे। यहां मेरे अलावा ओर कोई नही दिख रहा था। इसको देखकर मैंने अनुमान लगाया की यह जेल भी हो सकती है या फिर सैनिको की विश्राम करने की जगह भी। यहाँ से ऊपर चलने पर छत आ जाती है। इसकेे ऊपर जो मंजिले थी वह आज पूरी तरह से नष्ट हो चुकी है। कभी यह बहुत सुंदर बना हुआ होगा, हर जगह चहल पहल रहती होगी।
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मैं ऊपर से नीचे आ गया। अब समय भी लगभग शाम के पांच बज रहे थे। रास्ते में मुझे एक स्थानीय लडका मिला वह पास के गांव में ही रहता था। उसने बताया की वह कई बार इधर आया है। लेकिन उसे आज तक कोई भूत प्रेत नही दिखाई दिया है जबकी रात में जंगली जानवर जरूर उसके गांव तक आ जाते है। उससे बात कर हम बाहर की तरफ चल पडे। एक दो मन्दिर और बने है किले में लेकिन वह थोडा हट कर बने है इसलिए उधर ना जा सका। सीधा बाहर के गेट पर पहुंच गया, यहां गेट के साथ ही हनुमानजी का मन्दिर बना है वही पर एक बूढे बाबा बैठे थे। जो उस मन्दिर के पुजारी भी थे। उनसे कुछ लोग बात कर रहे थे । उनसे पूछ रहे थे की इस जगह को लोग भूतीया किला क्यो कहते है? और आपने कभी कुछ महसूस किया? उन बाबा ने कहा की मुझे यहां पर कई बार कुछ अजीब महसूस हुआ है, रात में जब मन्दिर में पूजा करने के बाद जब जाता हूं तब भी लगता है की कोई है आसपास। उन्होने बताया की वह भी रात में मुख्य किले में नही जाते।
उनकी बात सुनकर मैं किले से बाहर निकल आया। और अपनी कार में बैठ, दिल्ली के लिए निकल पडा। रास्ते में कई सवाल मन में आ रहे थे की दो व्यक्तियों ने यहां पर भूत प्रेत की घटना को केवल कहानी मात्र बताया जबकी तीसरे व्यक्ति ने यहां पर कुछ अजीब होना स्वीकार किया। चलो जो भी हो मुझे यह किला देखना था और मैने देख लिया था।
एक वीडियो भी बनाया है , जिसमे आप भानगढ़ क़िले का भृमण कर सकते है।
वीडियो देखने के लिए यहाँ क्लिक करे।
सचिन त्यागी जी बढ़िया बोले तो एक नंबर
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Thanks vinay
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