भानगढ़ किले की यात्रा

21 जनवरी 2018

भानगढ़ का इतिहास :
भानगढ़ क़िले को आमेर के राजा भगवंत दास ने 16 वी शताब्दी (1573 )में बनवाया था। बाद में भगवंत दास के पुत्र व राजा मान सिंह के छोटे भाई माधो सिंह ने इसे अपनी रियासत की राजधानी बना लिया। माधो सिंह मुग़ल शहंशाह अकबर के राज में उनके दीवान थे। माधो सिंह के बाद उसका पुत्र छत्र सिंह गद्दी पर बैठा। कुछ समय पश्चात हरिसिंह का शासन भानगढ़ पर रहा । यही से भानगढ़ का पतन शुरू हुआ। छत्र सिंह के बेटे अजब सिह ने भानगढ़ के नजदीक ही अजबगढ़ का किला बनवाया और वहीं रहने लगा। इस समय औरंगजेब का क्रूर शासन पूरे भारत में फैला हुआ था। औरंगजेब कट्टर पंथी मुसलमान था। उसके दबाव में आकर हरिसिंह के दो बेटे मुसलमान बन गए, बाद में जयपुर के महाराजा सवाई जय सिंह ने इन दोनो को मारकर भानगढ़ पर कब्जा कर लिया तथा माधो सिंह के वंशजों को भानगढ़ का राज्य सौंप दिया।

( यह जानकारी भानगढ़ में लगे एक पुरातत्व विभाग के बोर्ड़ व विकिपीडिया द्वारा प्राप्त जानकारी के आधार पर है।)
यात्रा वृतांत
कुछ दिन जयपुर में परिवार संग घुमक्कड़ी कर वापिस घर की तरफ लौट रहा था। मुझे भानगढ़ क़िले को देखने की बहुत दिन से इक्छा थी, भानगढ़ अलवर ज़िला में स्तिथ है। यह सरिस्का वन अभ्यारण के नजदीक है। इस क़िले को भूतिया क़िला कहा जाता है। इसलिए हम जयपुर से भानगढ़ की तरफ चल दिए। जयपुर से भानगढ़ की सड़क से दूरी तक़रीबन 70 किलोमीटर है जिसको तय करने में डेढ़ से दो घंटे लग जाते है। दोपहर के साढ़े बारह का समय हो रहा था जब हम जयपुर से चले। हमने जयपुर आगरा रोड पकड़ लिया। यह रोड बहुत बढ़िया बना है। जयपुर से निकलते ही पहाड़ो के बीच से निकली एक लम्बी सुरंग मिली यह कुछ-कुछ मनाली के रास्ते में ओट जगह के नजदीक वाली सुरंग जैसी थी। वैसे इन सुरंगो को बनाने में बहुत मेहनत करनी होती है। लेकिन सड़़क यातायात केे मार्ग सुगम बन जाते है। सुरंग से पहले एक टोल पर ऐसा वाक्या हुआ जिस पर मुझे अपने आप पर बहुत शर्म आयी। हुआ यूँ की में एक टोल पर लाईन में लगा था तभी एक व्यक्ति बोला की आप उधर लाइन में मत लगो इधर वाली लाईन में लगो। तब मैंने उससे कहा की मैं इधर ही लगाऊगा अपनी गाड़ी । फिर उसने बोला की यह टोल प्राइवेट गाड़ी के लिए फ्री है और आप टोल देय वाली लाईन में लगे है। तब मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ और उस व्यक्ति को धन्यवाद बोलकर टोल बैरियर सेे बाहर गया और आगे बढ़ चला। गूगल मैप पर देखा तो भानगढ़ अभी भी तकरीबन 60 km की दूरी पर था। हमे दौसा तक इसी सड़क पर आगे बढना था फिर दौसा से एक सड़क बांंयी तरफ भानगढ़ के लिए चली जाती है, और सीधी सड़क भरतपुर की तरफ चली जाती है।
सुबहे होटल में ही नाश्ता किया था अब भूख जोरो से लग रही थी। इसलिए सड़क के किनारे पर बने एक ढ़ाबे पर पेट पूजा की गयी। खाना खाने के बाद हम आगे की और चल पड़े। जल्द ही दौसा पहुंच गए, दौसा में काफी होटल है जहा रुका जा सकता है और आसपास के दर्शनीय स्थलों को देखा जा सकता है। हम बांये रास्ते को मुड़ गए यहाँ से भानगढ़ तक़रीबन 32 km है। मतलब 40 मिनटों में हम वहां पहुंच ही जायँगे। अब रोड छोटा हो चला था कही कही सड़क निर्माण कार्य चल भी रहा था। कुल मिला कर रोड ठीक ठाक था। अब हमे ग्रामीण परिवेश में होने का अहसास हो रहा था। सड़क के दोनों तरफ गाँव दिख रहे थे। कही कही कुछ लोग राजस्थानी पहनावा पहने भी दिख रहे थे। हम शाम के लगभग चार बजे भानगढ़ पहुंचे। क़िले से कुछ दूरी पर 50 रुपयों की एक पर्ची काटी गयी। बाकि क़िले देखने का कोई टिकट नहीं था।
गाड़ी एक तरफ खड़ी कर हम क़िले में प्रवेश कर गए। प्रवेश द्वार के ही समीप हनुमान मंदिर बना है। यहाँ से आगे चलते ही पुराना बाजार आ जाता है रास्ते के दोनों तरफ दुकाने बनी है, जो कभी दो मंज़िला रही होगी। जिनको देखकर लगता है की कभी यहाँ पर बहुत बड़ा बाजार रहा होगा। आज मात्र उनके खंडर अवशेष ही बचे है। इस बड़े बाजार से होते हुए हम एक और दरवाजे पर पहुंचे। यह महल का दरवाजा है। दरवाजे के बायें तरफ एक खंडरनुमा इमारत है, और दाहिनी तरफ गोपीनाथ मंदिर है। गोपीनाथ मंदिर कभी विष्णु भगवान को समर्पित होगा लकिन फ़िलहाल यह मंदिर मूर्ति रहित है। मंदिर की बुर्ज भी नहीं है। लकिन यह मंदिर बाहर से उत्तम वास्तुकला का एक सुन्दर उदाहरण है। जब कभी यह महल आबाद रहा होगा तब यह कितना सुन्दर रहा होगा। केवल आज हम सोच ही सकते है। यह क़िला तीन तरफ से अरावली की पहाड़ियों से घिरा है। जो इसे और भी खूबसूरत बनाता होगा, लकिन आज यह एक भूतिया क़िला मात्र बन कर रह गया है। थोड़ा आगे चलने पर एक पानी की बाबड़ी है, जिसमे आज भी भरपूर पानी था। बाबड़ी के नजदीक ही सोमेश्वर महादेव मंदिर है। जो शिव को समर्पित है, यही पर हमे एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया की अब पर्यटक इधर आने लगे है पहले केवल आसपास के लोग ही आते थे। उसने हमे यह भी बताया की यहाँ कोई भूत -प्रेत नहीं है। यहाँ केवल जंगली जानवर है जिसमे जंगली सूूअर व तेंदुआ है जो गर्मीयो में यहाँ बाबडी पानी पीने भी आते है। उसने बताया की वह यहाँ कई साल से आता है लकिन उसे आज तक यहां कोई भी ऐसी अजीब बात महसूस नहीं की जिससेे यह साबित हो की यहां पर भूत प्रेत रहते है। उसने तांत्रिक सिंघिया की कहानी को भी नकली बताया। उसने एक पहाड़ी की तरफ इशारा करतेे हुुुए, एक छतरी दिखाई उस ने बताया की लोग उसे तांत्रिक की छतरी कहते है , और तरह तरह की कहानियों से जोड़ते है। जबकी वह पहले सैनिको के लिए रही होगी जहां सेे वह दूूूर तक नजर रख सके। उसको धन्यवाद करने के बाद हम मंदिर से बाहर आ गए

श्रीमती जी
मैं ही हूँ सचिन त्यागी

मंदिर से थोड़ा आगे चलकर एक और दरवाजा आया जो मुख्य महल या कहें की शाही राजमहल का था। कहते है की कभी यह कई मंजिला था लकिन आज दो या तीन मंजिल का ही रह गया है वो भी जर्जर हालत में। वैसे इस क़िले को भारतीय पुरातत्व विभाग ने अपने अधिग्रहण कर लिया है। हम किले की पहली मंजिल पर पहुुुुँचे, यहां पर आकर मेेेेरी श्रीमती और बेटा ऊपर नहीं गये क्योकि वो चलते चलते बहुत थक चुके थे। मैं ही ऊपर किले की तरफ चला गया। पहली मंजिल पर एक गलियारा बना था जिस के अंदर कमरे बने थे। जो अंधेरा समेटे हुए थे। यहां मेरे अलावा ओर कोई नही दिख रहा था। इसको देखकर मैंने अनुमान लगाया की यह जेल भी हो सकती है या फिर सैनिको की विश्राम करने की जगह भी। यहाँ से ऊपर चलने पर छत आ जाती है। इसकेे ऊपर जो मंजिले थी वह आज पूरी तरह से नष्ट हो चुकी है। कभी यह बहुत सुंदर बना हुआ होगा, हर जगह चहल पहल रहती होगी।

इस किले की बर्बादी की भी बहुत सी कहानी है। इतिहास में वर्णित है की अज़बगढ़ और भानगढ़ में युद्ध हुआ जिसमे भानगढ़ हार गया और सब मारे गए और यह किला भी तबहा हो गया। लकिन कुछ लोगो का मानना है, की भानगढ़ तबाही के पीछे एक तांत्रिक सिंघिया का श्राप है। कहते है की भानगढ़ में एक तांत्रिक रहा करता था। जो काले जादू करने में माहिर था। उसने भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती को देखा और उस पर मोहित हो गया। वह उसको हर कीमत पर पाना चाहता था। उसने काला जादू कर एक इत्र की शीशी को राजकुमारी तक पंहुचा दिया अगर राजकुमारी उस इत्र को लगा लेती तो वह भी उसकी तरफ मोहित हो जाती लकिन रत्नावती को उस तांत्रिक की इस चाल का पता चल गया और राजकुमारी ने वह इत्र की शीशी एक पत्थर पर फैक कर तोड दी। जिससे यह हुआ की वह पत्थर तांत्रिक के काले जादू के कारण तांत्रिक पर मोहित हो गया और उसी पत्थर के कारण तांत्रिक की मौत हो गई। लेकिन तांत्रिक सिंघिया ने मरते मरते भानगढ़ को यह श्राप दिया की भानगढ़ पूरी तरह से तबाह हो जाएगा और सभी लोग मारे जाएगे। कहते है की बाद में अजबगढ़ ने भानगढ़ पर हमला किया जिस युद्ध में सब मारे गए और उनकी आत्मा व तांत्रिक सिंघिया की आत्मा आज भी भानगढ़ में मौजूद है। इसलिए ही इस किले को भूतिया किला माना गया है

मैं ऊपर से नीचे आ गया। अब समय भी लगभग शाम के पांच बज रहे थे। रास्ते में मुझे एक स्थानीय लडका मिला वह पास के गांव में ही रहता था। उसने बताया की वह कई बार इधर आया है। लेकिन उसे आज तक कोई भूत प्रेत नही दिखाई दिया है जबकी रात में जंगली जानवर जरूर उसके गांव तक आ जाते है। उससे बात कर हम बाहर की तरफ चल पडे। एक दो मन्दिर और बने है किले में लेकिन वह थोडा हट कर बने है इसलिए उधर ना जा सका। सीधा बाहर के गेट पर पहुंच गया, यहां गेट के साथ ही हनुमानजी का मन्दिर बना है वही पर एक बूढे बाबा बैठे थे। जो उस मन्दिर के पुजारी भी थे। उनसे कुछ लोग बात कर रहे थे । उनसे पूछ रहे थे की इस जगह को लोग भूतीया किला क्यो कहते है? और आपने कभी कुछ महसूस किया? उन बाबा ने कहा की मुझे यहां पर कई बार कुछ अजीब महसूस हुआ है, रात में जब मन्दिर में पूजा करने के बाद जब जाता हूं तब भी लगता है की कोई है आसपास। उन्होने बताया की वह भी रात में मुख्य किले में नही जाते।

उनकी बात सुनकर मैं किले से बाहर निकल आया। और अपनी कार में बैठ, दिल्ली के लिए निकल पडा। रास्ते में कई सवाल मन में आ रहे थे की दो व्यक्तियों ने यहां पर भूत प्रेत की घटना को केवल कहानी मात्र बताया जबकी तीसरे व्यक्ति ने यहां पर कुछ अजीब होना स्वीकार किया। चलो जो भी हो मुझे यह किला देखना था और मैने देख लिया था।

एक वीडियो भी बनाया है , जिसमे आप भानगढ़ क़िले का भृमणर सकते है।
वीडियो देखने के लिए यहाँ क्लिक करे।

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