गर्मियांगर्मियां आ चुकी है। हर कोई बाहर पहाड़ों की तरफ घुमने के लिए निकल पडा है या फिर घुमने का कार्यक्रम बना रहा है। आज कल सभी लोग छुट्टी होते ही, शीतलता पाने के लिए पहाड़ों की तरफ चल पडते है जिस कारण मसूरी, शिमला व नैनीताल जैसे पहाडी शहरो में पर्यटकों की भीड के कारण जाम की स्थिति बन जाती है। ऐसे में हर कोई चाहता है की ऐसी जगह जाया जाए। जहां प्रकृति की सुंदरता के साथ साथ शीतलता भी हो और भीड भाड भी ना हो। तो आज मैं आपको एक ऐसी जगह लेकर चलता हूं। जो सुंदर है, पौराणिक महत्व लिए है, वहां एक सुंदर झील भी है, जहां आप बोटिंग भी कर सकते है और साथ में बच्चो के लिए एक छोटा सा चिड़ियाघर भी है और यह दिल्ली के बेहद नज़दीक भी है। आप सोच रहे होंगे की ऐसी कौन सी जगह है? तो चलो मैं आपको इस जगह के बारे में बता ही देता हूं। यह जगह हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में और शिवालिक पहाडियों के बीच बसी है। इस जगह का नाम रेणुका जी है। दिल्ली से तकरीबन 295 किलोमीटर तथा छ: से सात घंटे की दूरी मात्र पर स्थित है यह रेणुका जी। यह अपनी सुंदर झील के लिए प्रसिद्ध है जिसे अगर ऊपर आसमान से देखा जाए तो यह झील एक स्त्री का रूप लिए दिखती है और इस जगह को भगवान परशुराम जी की जन्मस्थली भी माना जाता है। आपको इस जगह के बारे में जानकर अच्छा लगा ना। जब आप यहां आएगे तब आपको और भी अच्छा लगेगा।
क्या क्या देखें…
यहां पर बहुत सुंदर व पवित्र झील है। जिसकी लोग परिक्रमा भी करते है। यह परिक्रमा मार्ग लगभग तीन किलोमीटर लम्बा है। जिस पर चलना बहुत ही रोमांचित करने वाला होता है । एक तरफ झील का सौंदर्य आपको मोहित कर रहा होता है तो दूसरी तरफ बने चिडियाघर में जानवरो को देखना बेहद अच्छा लगता है। भालू, शेर, तेंदुए और हिरण जैसे जानवर भी यहां पर आप देख सकते है। इन सभी जानवरो को अलग अलग व खुले पिंजरों में रखा गया है। जिन्हे देखकर बच्चे तो बच्चे बड़े भी बहुत आन्नद लेते है। और इन्ही के कारण झील की परिक्रमा कब पूरी हो जाती है हमे एहसास ही नही होता। यह कुछ जंगल सफारी जैसा महसूस कराता है। झील की परिक्रमा आप अपनी कार व दोपहिया वाहन से भी कर सकते है लेकिन सोमवार को यह सुविधा नही होती। सोमवार के दिन सिर्फ पैदल ही परिक्रमा होती है। झील में मौजूद कई तरह की मछलियां व कछुआ देखने को मिलते है। कुछ लोग आटे की बनी गोलियों इनको खिलाते है। इन्हे देखना भी बडा मनमोहक होता है। झील के किनारे पर बने कुछ मन्दिर व आश्रम भी दर्शनीय है। झील के निकट भगवान परशुराम राम मन्दिर व उनकी तपस्थली भी देख सकते है। परशुराम की माता रेणुका जी, जिनके नाम से यह झील है, उन का मन्दिर भी नजदीक है। यहां पर बहुत तरह के पक्षियों को भी देख सकते है और इनकी सुरीली चहचहाहट हर जगह सुनने को मिलती रहती है।
कहां ठहरे…
यहां पर ठहरने के लिए हिमाचल प्रदेश का गेस्ट हाऊस भी बना है। जो झील के बेहद नजदीक है। साथ मे आप झील के नजदीक बने आश्रमों में भी ठहर सकते है। आप रेणुका झील से तकरीबन दो किमी पहले गिरी नदी के किनारे पर बसे एक कस्बे ददाहू में भी ठहर सकते है। यहां पर कई होटल बने है।
कैसे पहुंचे…..
रेणुका जी सड़क मार्ग से कई बडे शहरो से जुडा है। दिल्ली से पानीपत व कुरूक्षेत्र होते हुए कालाअम्ब पहुँचा जाता है, जहां से नाहन और रेणुका पहुंच सकते है। दिल्ली से रेणुका झील तक सड़क मार्ग की दूरी मात्र 295 किलोमीटर है। अम्बाला शहर से रेणुका जी मात्र 115 किलोमीटर की दूरी मात्र पर स्थित है। देहरादून से रेणुका जी बेहद नजदीक है यहां से रेणुका झील मात्र 95 किलोमीटर की दूरी पर ही है। रेणुका जी के नजदीक ददाहू कस्बे से देहरादून व शिमला और अन्य जगहों के लिए बस सर्विस भी उपलब्ध है।
रेणुका झील का पौराणिक महत्व….
रेणुका झील के निकट भगवान परशुराम की जन्मस्थली भी है। रेणुका जी परशुराम जी की माता थी। इस झील का नाम रेणुका झील क्यों पडा इसके पीछे एक पौराणिक कहानी है…….
कभी पहले यह घनघोर जंगल हुआ करता था। यहा पर ऋषि जमदग्नि और उनकी पत्नी भगवती रेणुका जी का आश्रम था। उनके पुत्र राम (जो बाद मे शिव जी के फरसे के कारण परशुराम कहलाए) रहते थे। बालक राम अपनी तपस्या के लिए कही गए हुए थे। उसी दौरान जंगल में शिकार खेलने के लिए राजा सह्त्रबाहु आया, वह बहुत भूखा-प्यासा था। इसलिए वह जमदग्नि के आश्रम को देखकर, वहां पहुंचा। वहां रेणुका जी ने उन्हे बहुत स्वादिष्ट कई तरह के व्यंजन खाने के लिए दिए। राजा भोजन करने के बाद बहुत खुश हुआ, उन्होने रेणुका जी से पुछा की आप इस घने जंगल में इतने स्वादिष्ट भोजन कहां से लेकर आई? तब रेणुका जी ने उन्हे अपनी कामधेनु गाय के विषय में बताया। कामधेनु से जिस चीज की आप इक्छा करेगे यह गाय उन सभी इक्षाओ को पूरा करती है। तब राजा सहत्रबाहु ने अपने बल के जोर पर वह गाय अपने अधिकार में ले ली और ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी। और बल पूर्वक माता रेणुका को भी ले जाने लगा तब रेणुका जी ने अपनी लाज बचाने के लिए, वहां पर बने एक सरोवर मे जल समाधि ले ली। उधर परशुराम बडे हुए और शिव से शस्त्र शिक्षा ग्रहण कर अपने घर पहुचें तब उन्हे राजा सहस्त्रबाहु के इस अपराध के बारे में पता चला। उन्होनो राजा सहस्त्रबाहु व उसकी सम्पूर्ण सेना का विनाश अपने फरसे से कर दिया तब से ही वह राम से भगवान परशुराम कहलाए। उन्होने अपने तपोबल से अपने पिता ऋषि जमदग्नि को जिन्दा कर दिया और अपनी मां को भी सरोवर से बाहर आने पर मजबूर कर दिया । तब माता रेणुका जी ने परशुराम जी को वचन दिया की वह हर वर्ष देव प्रवोधिनी एकादशी को इस सरोवर से बाहर आया करेगी और सभी भक्तों को दर्शन व आशीर्वाद देती रहेगी। इतना कहकर मां रेणुका जी सरोवर के जल मे विलिन हो गई। तब से यह सरोवर रेणुका झील कहलाने लगा।