ज्वाल्पा देवी से ख़िरशू

मेरी केदारनाथ यात्रा
इस यात्रा को शुरू से पढ़े…….
ख़िरसू, पौड़ी गढ़वाल
30 अप्रैल 2018, मंगलवार
जब हम ज्वाल्पा देवी से चले तब दोपहर के लगभग 3:30 बज रहे थे। वैसे तो हमें आज के दिन कलडूँग में गो हिमालय के होमस्टे पर रुकना था। लेकिन मेरे मित्र बीनू कुकरेती जी से जब मेरी बात हुई तो उन्होंने कहा जब इधर घूमने आ ही रहे हो तो फिर ख़िरसू घूम कर आना। उन्होंने बताया कि ख़िरसू एक बहुत सुंदर जगह है। और उधर से हिमालय के दर्शन भी बहुत बढ़िया से होते है। चौखम्भा पर्वत भी दिखता है। इसलिए हमने ख़िरसू में ही रुकने का प्लान कर लिया।

ज्वालपा देवी से ख़िरसू की दूरी लगभग 41 किलोमीटर है। जो हमने लगभग डेढ़ घंटे में पूरी कर ली थी। पूरा रास्ता पहाड़ी घुमावदार ही है। रास्ते मे कई गांव आते है उन्ही में एक स्थान आता है बुवाखाल। बुवाखाल से एक रास्ता बांए तरफ पौड़ी की तरफ चला जाता है। और फिर श्रीनगर के लिए। और एक रास्ता सीधा आगे ख़िरसू के लिए चला जाता है। इसी रास्ते पर आगे चोबट्टा आता है, बाद में ख़िरसू। हम ख़िरसू वाले रास्ते पर चल पड़े। कुछ समय बाद हमे सड़क के दोनों तरफ बड़े बड़े पेड दिखने शुरू हो गए। यह चोबट्टा था और यह बेहद सुंदर जगह थी। चोबट्टा से थोड़ा आगे ही ख़िरसू है शायद दो या तीन किलोमीटर। हमे ख़िरसू में प्रवेश करते ही काफी भीड़भाड़ दिखाई दी। ऐसा लग रहा था जैसे कोई स्थानीय मेला चल रहा था। क्योंकि ज्यादातर लोग स्थानीय ही लग रहे थे, जब हम गढ़वाल मंडल के गेस्ट हाउस (gmvn) पहुंचे। तब हमें पूरी तरह पता चल चुका था कि यह एक वार्षिक मेला है जो अभी अभी समाप्त हुआ है। इसलिए भीड़ ज्यादा दिख रही है। GMVN के गेस्ट हाउस पहुंचते ही हमने एक रूम (hut) ले लिया। मैंने यह रूम इसलिए लिया क्योंकि इस रूम की खिड़की से पर्दा हटाते ही अंदर से ही हिमालय दर्शन हो रहे थे। इस रूम के एक रात के ठहरने का किराया मुझे 1650 रुपये चुकाना पड़ा। जबकि यहां रुकने के और भी सस्ते विकल्प थे। अगर मुझे ख़िरसू gmvn गेस्ट हाउस की तारीफ करनी हो तो मैं इन शब्दों में करूँगा की यह काफी शांत व मनमोहक जगह पर बना है। यह खुली जगह पर बना है। एक तरफ जंगल दिखता है, तो दूसरी तरफ हिमालय। कुछ दिन एकांत में व्यतीत करने हो तो मोबाइल को बंद करके इधर रहा जा सकता है।

खिर्सू

गेस्ट हाउस के सामने एक सूखा पेड़ था। उस पर कुछ लंगूर बैठे हुए थे। जो उछलकूद कर रहे थे। गेस्ट हाउस में ही तरह तरह के पौधे लगे हुए थे। जिनपर फल व फूल भी लगे हुए थे। जो हर किसी को अपनी और आकर्षित कर रहे थे। यहां से चौखम्बा पर्वत समेत अन्य कुछ पहाड़ियों के भी दर्शन हो रहे थे। गेस्ट हाउस में हमारे अलावा दो तीन फैमिली और रुकी हुई थी। एक परिवार जो दिल्ली से ही आया हुआ था। जब उनसे बात हुई तो उन्होंने बताया कि उन्हें आये इधर अभी दो दिन ही हुए है, वह हर साल इधर ही आते है। और तीन- चार दिन रहते है। उन्होंने इसका कारण यहाँ की हवा, पानी व वातावरण को बताया जो उन्हें इधर हर साल बुलाती है। एक परिवार से और मिला वह हमारे शाहदरा से ही थे और मेरे एक अंकल के जानकार भी निकले और साथ मे मेरे घुमक्कड़ मित्र व गो हिमालय होम स्टे के मालिक सूर्य प्रकाश डोभाल जी के मामा भी निकले। उन्होंने बताया कि वह ख़िरसू के ही है लेकिन कई सालों बाद यहां आए है। इन सभी लोगो से बात करके अच्छा लगा।

वैसे मेरी नज़र में ख़िरसू कोई हिल स्टेशन नही है, बल्कि एक गांव ही है। यह मसूरी और नैनीताल जैसा नही है। इसका यह कारण है कि जब उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश से अलग हुआ तब ख़िरसू व ऐसे कुछ गांव पर्यटन मानचित्र पर उभर कर आये। उत्तराखंड सरकार ने कुछ ऐसी जगहों को प्रमोट किया। उन्ही जगहों में ख़िरसू भी है। अभी यहाँ gmvn के गेस्ट हाउस समेत एक दो होटल ही मात्र है, बाकी होमस्टे भी हो सकते है। घूमने के लिए एक मनोरंजन पार्क बना है। और घंडियाल देवता का मंदिर है, जो एक बड़े से मैदान के पास बना है। यह यहां के स्थानीय देवता है और पूजनीय भी। सालभर यहाँ मौसम ठंडा और अच्छा ही रहता है। गर्मियों में यहां बहुत भीड़ होती है। यह समुंदर की सतह से लगभग 1750 मीटर की ऊंचाई पर बसा है। इसके आस पास घने जंगल है। यहां चीड़, देवदार, बांज आदि के दरख़्त(पेड़) पाए जाते है। इसलिए यहाँ की हवा में स्वच्छता है। इधर कई तरह-तरह के पक्षियों को देखा जा सकता है। कुल मिलाकर यह एक सुंदर जगह है जहां पर आप शांति से कुछ पल बिता सकते हैं।
हम अपने रूम में पहुँचे ही थे कि जोर जोर से बारिश होने लगी। अब ठंडक पहले से बढ़ गयी थी। लेकिन बारिश थोड़ी देर बाद ही रुक गयी। जैसा अकसर पहाड़ो की बारिश होती था थोड़ा पड़ी और रुक गयी। फिर हमने गरमा गरम चाय पी और बाहर ख़िरसू घूमने के लिए निकल गए। हम एक बड़े से मैदान में पहुँचे। कुछ लोग अपनी दुकानें समटने में लगे थे। क्योंकि मेला आज थोड़ी देर पहले ही समाप्त हुआ था। सामने ही एक मंदिर दिख रहा था। वही घंडियाल देवता का मंदिर है, एक बच्चे ने मेरे पूछने पर बताया। मंदिर का बाहरी गेट खुला था। लेकिन अंदर वाला चेनल (गेट) बंद था। चलो कोई बात नही, हमने मंदिर देखना था और देवता को प्रणाम करना था। वो हमने कर ही लिए थे। अब मेरा बेटे देवांग को भूख लगने लगी थी इसलिए हम वापिस गेस्ट हाउस में लौट आये। क्योंकि ख़िरसू में खाने के लिए हमे कोई रेस्टोरेंट नही दिखा। गेस्ट हाउस पहुचे तो हल्का अंधेरा होने लगा था। सामने स्वेत हिम पर्वतों पर ढ़लते सूरज की लालिमा पड़ रही थी। तभी गेस्ट हाउस की लाइट चली गयी थोड़ी देर बाद एक कर्मचारी आये उन्होंने एक माचिस और एक मोमबत्ती (कैंडल) हमे देते हुए कहा कि जबतक जनरेटर नही चलता आप कैंडल जला लीजिएगा। उन्होंने खाने का भी आर्डर ले लिया था। वैसे आधे घंटे में जनरेटर भी चल गया और खाना भी आ गया। बारिश फिर से चालू हो गयी थी। और थोड़ी देर में बंद भी। क्योंकि पहाड़ों पर बारिश ऐसी ही होती है। खाना खाने के बाद मैं टहलने के लिए बाहर आया लेकिन सर्द हवाओं की वजह से वापिस कमरे में जाकर रजाई में घुस गया।
घंडियाल देवता मंदिर
मैं सचिन मंदिर पर (घंडियाल देवता के )
अगले दिन
01 मई 2018, बुधवार
सुबह उठ गया समय देखा तो 5:15 बज रहे थे। जल्द ही बिस्तर से निकला और कैमरा उठा कर बाहर आ गया। बाहर ठंडी हवा चल रही थी। हल्का अंधेरा था। चांद गोल और बहुत नज़दीक दिख रहा था। दो तीन चिड़ियो की आवाज तो आ रही थी पर वह दिख नही रही थी। चाय पीना का मन हुआ लेकिन 6:30 से पहले वो भी नही मिलेगी। थोड़ी देर घूमने के बाद वापिस रूम में लौट आया और खिड़की के पास ही बैठ गया। लगभग आधा घंटे बाद फिर बाहर आया। अभी दूर बर्फ के पहाड़ काले दिख रहे थे। लेकिन जब सूर्य अपनी रोशनी से इन्हें जगमग करेगा तो पल पल में बहुत से रंग दिखेंगे। आसमान में बादल थे इसलिए हो सकता है कि वो फ़ोटो ना ले पाऊ जो मुझे लेने थे। अब गेस्ट हाउस में बाहर थोड़ी हलचल बढ़ी और एक कपल जो कि कोलकाता से आये थे। उनसे बात हुई उन्होंने बताया कि वो आज चोपता तुंगनाथ जायंगे। वैसे मैंने देखा वेस्ट बंगाल के लोग काफी घूमते है। अब उजाला हो चुका था। और थोड़ा कोहरा भी था। दूर चौखम्बा पर्वत व अन्य पर्वतों पर बदल छाए हुए थे। वो साफ नही दिख रहे थे। चाय रूम में पहुँच चुकी थी इसलिए मैं भी रूम की तरफ बढ़ चला। और बाद में हम लोग गेस्ट हाउस से नाश्ता करने के बाद सुबह के लगभग 9 बजे आगे के सफर पर निकल गए…….
बर्फ के पर्वत अभी श्याम रूप लिए हुए है।
अब थोड़ा प्रकाश आया सूर्य का।
आड़ू
यात्रा अभी जारी है. …..
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